देश में धान की सर्वाधिक 23 हजार किस्में छत्तीसगढ़ में, कृषि विवि तैयार कर रहा इनकी डीएनए प्रिंटिंग...

देश में धान की सर्वाधिक 23 हजार किस्में छत्तीसगढ़ में, कृषि विवि तैयार कर रहा इनकी डीएनए प्रिंटिंग...


धान की कोई वैराइटी अच्छी खूशबू के लिए मशहूर है, किसी में भरपूर पोषक तत्व हैं, कोई बारीक है लेकिन पककर दाने लंबे होते हैं, किसी की उपज ज्यादा है... छत्तीसगढ़ में दरअसल धान की 23 हजार से ज्यादा किस्में हैं जो इस तरह की कोई न कोई खूबी लिए हुए हैं, लेकिन इनकी पहचान का कोई हाईटेक तरीका नहीं है। इसी दिक्कत को दूर करने के लिए पहली बार इंदिरा गांधी कृषि विवि धान की 23 हजार किस्मों की डीएनए प्रिंटिंग (फिंगर प्रिंटिंग) कर रहा है और काम अंतिम चरण में है। किसी भी फसल, खासकर अनाज के मामले में इतना बड़ा डीएनए प्रिंटिंग अभियान देश में संभवत: अकेला बताया जा रहा है। यह डीएनए प्रिंट ही बताएगा कि अगर धान की किसी वैरायटी में कोई खूबी है तो उसके पीछे जेनेटिक कारण क्या है?

इंदिरा गांधी कृषि विवि में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग का काम कुछ समय पहले शुरू हुआ था। यह दरअसल किसी भी वैरायटी की आनुवंशिक स्तर पर डेटा इकट्ठा करने की कोशिश है। इसमें सभी 23 हजार वैरायटी ली गई हैं। अब तक 20 हजार से अधिक धान किस्मों का डीएनए फिंगर प्रिंटिंग कर लिया है। अन्य किस्मों का डिजिटल डाटा भी इस साल तैयार हो जाएगा। डीएनए फिंगरप्रिंटिग पूरी होने के बाद छत्तीसगढ़ देश में पहला राज्य होगा, जहां एक साथ इतनी वैराइटी के गुणों का जेनेटिक्स लेवल पर डाटा रहेगा। अधिकारियों ने बताया कि देश में छत्तीसगढ़ के पास ही सबसे अधिक धान की किस्मों का संग्रहण है। डीएनए फिंगर प्रिंट का काम देश के कई राज्यों में किया जा रहा है। लेकिन वहां किस्मों की संख्या ज्यादा नहीं है। अभी धान की किस्मों का डीएनए फिंगर प्रिंटिंग किया जा रहा है। इसके बाद तिवड़ा का किया जाएगा। तिवड़ा की यहां करीब 1964 किस्में हैं।

समझिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग को
अधिकारियों ने बताया कि किसी पौधे का बाहरी आवरण और गुण जो दिखायी पड़ते हैं, उनको फिनोटिपिंग कहा जाता है। इसी तरह जो जीन से नियंत्रित होते हैं उसे जीनोमिंग कहा जाता है। डीएनए फिंगरप्रिंटिंग दरअसल जीनोमिंग में ही आगे की कड़ी है। इसके तहत ही धान की 23 हजार किस्मों में पाये जाने वाले गुणों के लिए जिम्मेदार जीनों की पहचान की जा रही है।

कम समय में ढूंढेंगे नई किस्में, अभी 10-10 साल लग रहे
वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की नई किस्म को आने में अभी करीब 10 साल तक लग रहे हैं। वैज्ञानिक इस पर 7-8 साल काम करते हैं। फिर इसे उत्पादन स्तर तक आते-आते तीन साल और लगते हैं। कई बार यह भी देखा गया है कि किसी वैज्ञानिक ने नई किस्म निकालने के लिए बरसों मेहनत की, लेकिन रिजल्ट अच्छा नहीं रहा। डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के बाद यह स्थिति नहीं रहेगी। क्योंकि, शुरुआत में ही यह जानकारी मिल जाएगी कि किसी वैराइटी में पायी जाने वाली खूबियों के लिए कौन सा जीन जिम्मेदार है। शोध इसी आधार पर ही होगा।

अब किस्मों पर अधिकार : कुलपति
"धान की किस्मों की डीएन फिंगरप्रिंटिंग से भविष्य में इनकी मदद से बहुत कम समय में मनचाही किस्में निकाली जा सकेंगी। यही नहीं, सभी वैरायटी पर छत्तीसगढ़ का अधिकार भी साबित हो जाएगा।"
-डा. एसके पाटील, कुलपति इंगां कृविवि



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फाइल फोटो।


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